अब तक मैंने ज़्यादातर नॉन-फ़िक्शन किताबें ही पढ़ी हैं, और फ़िक्शन में भी बस कुछ अंग्रेज़ी उपन्यासों तक ही सीमित रहा हूँ। लेकिन हाल ही में मेरी हिंदी उपन्यासों में रुचि काफ़ी बढ़ गई—विशेष रूप से जब से मैंने हिंदी युग्म और उनकी टैगलाइन “नई वाली हिंदी” को फ़ॉलो करना शुरू किया है।
इसके बाद से मैंने नए हिंदी लेखकों को पढ़ना शुरू किया—जैसे दिव्य प्रकाश दुबे, मानव कौल, अंकुश कुमार और ज्ञानेश साहू। दिव्य प्रकाश दुबे जी की मैंने कई किताबें पढ़ी हैं, जिनमें यार पापा, मुसाफ़िर कैफ़े और मसाला चाय शामिल हैं। मानव कौल जी की मैंने पहले बहुत दूर, कितना दूर होता है पढ़ी थी, और अब उनकी एक और किताब मेरी सूची में जुड़ गई है—साक्षात्कार।

यह समीक्षा मैं हिंदी में ही लिख रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि एक हिंदी उपन्यास की समीक्षा तो हिंदी में ही होनी चाहिए। लेकिन इसका अनुवाद मैं अपने ब्लॉग में ज़रूर करवाऊँगा ताकि जिन लोगों को हिंदी नहीं आती, वे भी इस समीक्षा को पढ़ सकें।
साक्षात्कार का अर्थ है इंटरव्यू या वार्तालाप और इस उपन्यास का मूल ही एक साक्षात्कार या वार्तालाप है। मानव कौल द्वारा लिखित साक्षात्कार एक हिंदी उपन्यास है जो अंतर्दर्शन, आत्म-जागरूकता और जीवन के शांत क्षणों की पड़ताल करता है।
वैसे तो मैंने मानव कौल के ज़्यादा उपन्यास नहीं पढ़े हैं, इसलिए उनके लेखन पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। लेकिन अगर मैं इस उपन्यास की बात करूँ तो इसमें एक ठहराव है, एक अजीब सी ख़ामोशी। ऐसा लगता है मानो यह उपन्यास बहुत ही फ़ुर्सत से लिखा गया है।
इस कहानी में तीन मुख्य किरदार हैं—अतीव, रुबीमा और शुभांकर—जिनमें से अतीव और शुभांकर तो पेशे से लेखक हैं, और उनमें से एक बहुत प्रसिद्ध लेखक है। तीसरा किरदार, जो रुबीमा का है, एक लड़की है जो पेशे से वकील है, लेकिन लिखने में भी रुचि रखती है। उसे पढ़ने का शौक है और वह पत्रिकाओं में किताबों की समीक्षाएँ भी करती है, लेकिन एक अलग नाम से।
इस उपन्यास की ख़ासियत यह है कि यह दिखाता है कि ज़रूरी नहीं कि जो काम आपको अच्छा लगता है, वह आप सिर्फ़ क्रेडिट के लिए करें। कभी-कभी मन को जो अच्छा लगे, वैसा काम भी करना चाहिए। यह उपन्यास लेखन और सत्य के बीच एक दिलचस्प संवाद करता है, और लेखन, लेखक और उनके जीवन के जटिल संबंधों को भी दर्शाता है।
दिलचस्प बात यह भी है कि इस कहानी में एक चौथा किरदार भी है—जिसका नाम है तितली। इस किरदार के बारे में मैं ज़्यादा नहीं बताऊँगा, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप उपन्यास पढ़ें और इस किरदार को खुद जानें। बस इतना कहूँगा कि तितली इस उपन्यास का अहम हिस्सा है। और एक और ख़ास बात यह है कि रुबीमा का किरदार एक तरह से अतीव और शुभांकर के बीच की कड़ी है—या यूँ कहें कि वह एक पुल है जो इन दोनों को जोड़ती है।
इस उपन्यास में कुछ ऐसे पल हैं जो आपको भावुक कर देंगे, और कुछ ऐसी बातें हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी—विशेष रूप से लेखन और लेखकों के बारे में। मिसाल के तौर पर, इसमें शुभांकर का किरदार एक जगह लेखकों की तुलना जोकर से करता है। वह कहता है कि लेखक भी एक जोकर ही तो होता है—जो भेस बदल लेता है और अपने छोटे-छोटे करतबों से लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। यह बात बिल्कुल सही है, क्योंकि वास्तव में देखा जाए तो लेखक भी जोकर की तरह अपने लेखन से पाठकों को अपनी किताब में बाँध कर रखता है।
हालाँकि, मैं एक डिस्क्लेमर भी देना चाहूँगा—यह कोई आसान उपन्यास नहीं है। अगर आप एक गंभीर पाठक हैं और दर्शन (फिलॉसफी) में दिलचस्पी रखते हैं, तभी यह उपन्यास आपको पसंद आएगा। यह उपन्यास लेखकों और उनके मनोविज्ञान को दर्शाता है।
Ratings
Amazon: 4.5
Goodreads: 4.20
My Rating: 4/5
Conclusion
साक्षात्कार सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसा सफ़र है जो आपको लिखने, पढ़ने और जीने के नए नज़रिए से रूबरू कराता है। मानव कौल ने इसमें जो ठहराव, ख़ामोशी और अंतर्दर्शन के रंग भरे हैं, वह आपके मन पर लंबे समय तक अपनी छाप छोड़ते हैं। हर किरदार अपनी एक अलग कहानी लेकर आता है, लेकिन मिलकर यह कहानी एक ऐसा जाल बुन देती है जिसमें आप ख़ुद को उलझा हुआ पाते हैं। यह वो किताब है जो सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने के लिए लिखी गई है। अगर आपको कहानियों में बातचीत का अंदाज़, लिखने का जुनून, और बीच-बीच में ज़िंदगी के गहरे सवाल पसंद हैं, तो साक्षात्कार आपके लिए एक अनमोल अनुभव हो सकती है।
अंत में, मैं यही कहूँगा कि आप इस उपन्यास को ज़रूर पढ़ें और मुझे बताएं कि आपको यह कैसा लगा। अगर आपने इसे पहले ही पढ़ लिया है, तो नीचे कमेंट में अपने विचार साझा कर सकते हैं।
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